मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य शासन से पूछा है कि सभी वर्गों के गरीब अभ्यर्थियों को आर्थिक रूप से कमजोर यानी ईडब्ल्यूएस के आरक्षण का लाभ क्यों नहीं दिया जा रहा है। चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत व जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब माँगा है। मामले पर अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी। सागर निवासी सोमवती पटेल व कटनी निवासी मीनुल कुशवाहा की ओर से अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह व रामेश्वर सिंह ठाकुर ने पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि आयोग द्वारा विज्ञान परीक्षा के लिए विज्ञापित किए जाने वाले पदों पर ईडब्ल्यूएस वर्ग के लिए देने दिए जाने वाले आरक्षण में ओबीसी, एससी और एसटी के अभ्यर्थियों को पृथक कर दिया गया है। राज्य सेवा परीक्षा 2024 के अभ्यर्थियों ने उक्त आरक्षण में आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को शामिल नहीं करने को चुनौती दी है। दलील दी गई कि 103वें संविधान संशोधन के द्वारा प्रत्येक वर्ग के गरीबों को अधिकतम 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने का उपबंध किया गया है। वहीं सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि इस याचिका में उठाए गए मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जनहित अभियान की याचिका में जवाब दिया जा चुका है। वहीं याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि जनहित अभियान विरुद्ध भारत संघ 2023 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को दिए जाने वाले आरक्षण को संविधान सम्मत माना है, इसलिए संविधान के अनुच्छेद 16 (6) के अनुसार प्रत्येक वर्ग को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए, लेकिन विवादित पॉलिसी के द्वारा राज्य सरकार द्वारा ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के लोगों को इस आरक्षण से वंचित किया गया है।

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